प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1 जुलाई 1954 को ही (भारत-चीन) सीमा पर बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए थे। यह बात ए जी नूरानी की नई किताब में कही गई है। पुस्तक के मुताबिक नेहरू ने न केवल बातचीत के दरवाजे बंद कर दिए थे बल्कि 1960 में भारत दौरे पर आए और विवाद को समाप्त करने को तैयार चाउ एन लाइ को टका सा जवाब दे दिया था। इन दोनों कारकों ने 1962 के भारत-चीन युद्ध की नींव डाल दी।
लीगल मामलों के एक्सपर्ट ए.जी. नूरानी सरहद से जुड़े मसलों के अपने अध्ययन के लिए भी जाने जाते हैं। नूरानी ने इस पुस्तक में 17 पैरा मेमोरेंडम को उद्धृत किया है जिसमें नेहरू ने कहा है,'हमारी अब तक की नीति और चीन से हुआ समझौता दोनों के आधार पर यह सीमा सुनिश्चित मानी जानी चाहिए। ऐसी जो किसी के साथ भी बातचीत के लिए खुली नहीं है। बहस के कुछ बेहद छोटे मसले हो सकते हैं लेकिन वे भी हमारी ओर से नहीं उठाए जाने चाहिए।'
इंडिया-चाइना बाउंडरी प्रॉब्लम 1846-1947: हिस्ट्री एंड डिप्लोमैसी' नाम की इस पुस्तक में बताया गया है कि भारत ने अपनी तरफ से ऑफिशल मैप में बदलाव कर दिया। 1948 और 1950 के नक्शों में पश्चिमी (कश्मीर) और मध्य सेक्टर (उत्तर प्रदेश) के जो हिस्से अपरिभाषित सरहद के रूप में दिखाए गए थे, वे इस बार गायब थे। 1954 के नक्शे में इनकी जगह साफ लाइन दिखाई गई थी।' लेखक ने कहा है कि 1 जुलाई 1954 का यह निर्देश 24 मार्च 1953 के उस फैसले पर आधारित था जिसके मुताबिक सीमा के सवाल पर नई लाइन तय की जानी थी। किताब में कहा गया है,'यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण था। पुराने नक्शे जला दिए गए। एक पूर्व विदेश सचिव ने इस लेखक को बताया था कि कैसे एक जूनियर ऑफिसर होने के नाते खुद उन्हें भी उस मूर्खतापूर्ण कवायद का हिस्सा बनना पड़ा था।'
सौ. नभाटा।
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