अक्सर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश में गरमागरम बहस चलती रहती है किन्तु मैं अनुभव करता हूँ कि भ्रष्टाचार की बहस में से मौलिक बात गायब है | सोम प्रकाश के मामले में हमारे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रिश्वत मात्र अनुचित काम को करने के लिए ही नहीं दी जाती है अपितु उचित कम को जल्दी करवाने के लिए भी दी जाती है क्योंकि समय ही धन है| विवेकाधिकार भ्रष्टाचार को जन्म देती है|इससे निष्कर्ष निकलता है कि भ्रष्टाचार को कम करने के लिए समय सारिणी निर्धारित कर व विवेकाधिकार समाप्त कर इस बुराई पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
दूसरी ओर देखें तो हमें ज्ञात होगा कि व्यापारी एवं उद्योगपति वर्ग ने अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बना रखें हैं| विभिन्न प्रकार की कर चोरी , बिजली चोरी आदि के मामलों में भी ये संगठन अपने सदस्यों का बचाव करते हैं| सदस्यों से मासिक या वार्षिक वसूली की जाती है जो संगठन के पदाधिकारियों द्वारा वाणिज्यिककर , आयकर , उत्पाद शुल्क ,चुंगी , बिजली विभाग, खाद्य सुरक्षा आदि के अधिकारियों को भेंट स्वरूप दे दी जाती है और एवज में इन अपराधियों को अभयदान दे दिया जाता है| किसी वस्तु विशेष पर कर आदि में मंत्रालय या सचिवालय स्तर से राहत के लिए भी यही सुगम मार्ग अपनाया जाता है| रिश्वत के इस खेल में लेने देने वाले दोनों पक्षकार सुरक्षित रहते हैं| सदस्यों को व्यक्तिगत मोलभाव नहीं करना पडता और अधिकारियों को वसूली के लिए जगह जगह नहीं जाना पडता है| व्यापारी एवं उद्योगपति वर्ग द्वारा दी गयी इन भेंटों को वस्तु/सेवा की कीमत में जोड़कर आम जनता से वसूल कर लिया जाता है|इस प्रकार रिश्वत का अंतिम भार जनता पर ही पडता है |
इसी प्रकार परिवहन के मामलों में भी ऑटो चालक अपने संगठनों के माध्यम से स्थानीय ट्रेफिक पुलिस को हफ्ता देते हैं| बड़े परिवहन संचालक संगठन भी परिवहन एवं पुलिस को एक मुस्त अभयदान शुल्क देते हैं|ट्रक ड्राईवर अपने पास डायरी रखते हैं जिसमें समय समय पर पुलिस को रास्ते में दी जाने वाली रकम का पुलिस के हाथ से ही इंद्राज करवाकर हिसाब मालिक को सौंप देते हैं| ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट लोक सेवक पकडे ही नहीं जाते हों किन्तु सशक्त व प्रभावी न्यायिक व्यवस्था के अभाव में वे दण्ड से बच जाते हैं |
चूँकि अपराधियों को दण्ड देना न्याय तंत्र का कार्य है और वह अभी तक इसमें अपेक्षा तक सफल नहीं है| अतः देश के गुणीजनों व प्रबुद्ध वर्ग से मेरा प्रश्न है कि जब तक देश में यह विकलांग न्याय प्रणाली है और रिश्वत देने वाले संगठन कार्यरत हैं तब तक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का कौनसा मार्ग है और कोई भी लोकपाल कानून कितना कारगर होगा इसका भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है|भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए मात्र लोकपाल ही नहीं अपितु देश की न्यायिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन से मौलिक सुधार कर इसे ब्रिटिश काल से निकालकर विश्व स्तरीय बनाने की महती आवश्कता है |
दूसरी ओर देखें तो हमें ज्ञात होगा कि व्यापारी एवं उद्योगपति वर्ग ने अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन बना रखें हैं| विभिन्न प्रकार की कर चोरी , बिजली चोरी आदि के मामलों में भी ये संगठन अपने सदस्यों का बचाव करते हैं| सदस्यों से मासिक या वार्षिक वसूली की जाती है जो संगठन के पदाधिकारियों द्वारा वाणिज्यिककर , आयकर , उत्पाद शुल्क ,चुंगी , बिजली विभाग, खाद्य सुरक्षा आदि के अधिकारियों को भेंट स्वरूप दे दी जाती है और एवज में इन अपराधियों को अभयदान दे दिया जाता है| किसी वस्तु विशेष पर कर आदि में मंत्रालय या सचिवालय स्तर से राहत के लिए भी यही सुगम मार्ग अपनाया जाता है| रिश्वत के इस खेल में लेने देने वाले दोनों पक्षकार सुरक्षित रहते हैं| सदस्यों को व्यक्तिगत मोलभाव नहीं करना पडता और अधिकारियों को वसूली के लिए जगह जगह नहीं जाना पडता है| व्यापारी एवं उद्योगपति वर्ग द्वारा दी गयी इन भेंटों को वस्तु/सेवा की कीमत में जोड़कर आम जनता से वसूल कर लिया जाता है|इस प्रकार रिश्वत का अंतिम भार जनता पर ही पडता है |
इसी प्रकार परिवहन के मामलों में भी ऑटो चालक अपने संगठनों के माध्यम से स्थानीय ट्रेफिक पुलिस को हफ्ता देते हैं| बड़े परिवहन संचालक संगठन भी परिवहन एवं पुलिस को एक मुस्त अभयदान शुल्क देते हैं|ट्रक ड्राईवर अपने पास डायरी रखते हैं जिसमें समय समय पर पुलिस को रास्ते में दी जाने वाली रकम का पुलिस के हाथ से ही इंद्राज करवाकर हिसाब मालिक को सौंप देते हैं| ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट लोक सेवक पकडे ही नहीं जाते हों किन्तु सशक्त व प्रभावी न्यायिक व्यवस्था के अभाव में वे दण्ड से बच जाते हैं |
चूँकि अपराधियों को दण्ड देना न्याय तंत्र का कार्य है और वह अभी तक इसमें अपेक्षा तक सफल नहीं है| अतः देश के गुणीजनों व प्रबुद्ध वर्ग से मेरा प्रश्न है कि जब तक देश में यह विकलांग न्याय प्रणाली है और रिश्वत देने वाले संगठन कार्यरत हैं तब तक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का कौनसा मार्ग है और कोई भी लोकपाल कानून कितना कारगर होगा इसका भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है|भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए मात्र लोकपाल ही नहीं अपितु देश की न्यायिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन से मौलिक सुधार कर इसे ब्रिटिश काल से निकालकर विश्व स्तरीय बनाने की महती आवश्कता है |
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